Saturday, February 16, 2008

कि कहब हे सखि रातुक

बहुत दिनक बाद टोला पर गप्प करे ल आएल छी, मुदा विद्यापति का संग ल के ......

कि कहब हे सखि रातुक .......बात । आनंद लेल जाए ।

गिरीन्द्र .


कि कहब हे सखि रातुक बात।

मानक पइल कुबानिक हाथ।।

काच कंचन नहि जानय मूल।

गुंजा रतन करय समतूल।।

जे किछु कभु नहि कला रस जान।

नीर खीर दुहु करय समान।।

तन्हि सएँ कइसन पिरिति रसाल।

बानर-कंठ कि सोतिय माल।।

भनइ विद्यापति एह रस जान।

बानर-मुह कि सोभय पान।।

2 comments:

आशीष कुमार 'अंशु' said...

मोहल्ला, कस्बा क बाद आहाँ टोला बना लेलौँ यौ...

नीक लागल आहँक टोल म आक

Gajendra said...

bar nik