Sunday, September 18, 2011

अंचल क स्मृति

किछु दिन पूर्व अप्पन हिंदी ब्लॉग अनुभव पर अंचल क याद करैत गाम पर लिखनै रही। कैना पूर्णिया जिला क गाम सभ में गाछ-वृक्ष क पूजा होएत छै। संगे एकटा गाछ क याद करैत शब्द कतरन बनने रहों। हिंदी दैनिक जनसत्ता इ कतरन क अखबार में जग देलक। मन खुश भेल।

तेज और भागम भाग जिंदगी में हम सब गाम क स्मृति से सेहो विलुप्त करैत जा रहल छी। ऐना में अधिकांश समय अप्पने पर लाज सेहो लगैत अछि। यदि ककरो से कही कि गाम में बस चाहे छी, तो अवाक भ क मुंह देख लगैत अछि। ओकर जवाब होएत छै- देखियो..अखनै सठिया गेला ..। त ककरो टिप्पणी होएत छै- बाउ, भावुक नै बनू..इ खयाल क छोड़ि क घर परिवार में जुटि जाउ...। मुदा अप्पन मन में अखैन धरि गाम-अंचल स जुड़ल याद क सहारे लिखबाक इच्छा अछि..जकरा हम इरादा कहैत छिए।

इतिहासकार व समाजविज्ञानी सदन झा अप्पन एकटा लेख में 'अंचल क सांस्कृतिक स्मृति' शब्द क प्रयोग करैत छथिन, हमरा इहै शब्द स राग अछि। त कि यदि योजना बनाकs गाम दिश घुमल जाए त कि खराब। रोजी-रोटी क व्यवस्था ओतउ स करल जा सकैत अछि। मुदा योजना क साकार करबाक हिम्मत हेबाक चाहि और संगे अपना पर भरोसा सेहो। खैर, पढू, जनसत्ता के समांतर स्तंभ में छपल हमर इ कतरन, जै चित्र रुप में अछि। फोटो पर चटका लगाउ और पढू।

1 comment:

Unknown said...


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