Wednesday, January 18, 2017

गाम


गाम शब्द सं अनुराग अछि. एहन अनुराग जकरा सं आगू किछु नै सुझाएत अछि। कतैक बैर लागल कि इ अनुराग कोनो भ्रम त नै छै? अथवा एकरा मूल कऽ तरफ कदम बढैबाक इच्छा कहल जाए?

अखनि धरि इहे सवाल क आसपास एकटा कोण बनैबाक इच्छा भ ऽ रहल अछि। समाज विज्ञानी एकरा एकटा प्रवासी कऽ इच्छा कहि सकैत छैथ मुदा हमरा बुझना जाएत अछि कि मूल संग प्रेम क व्याख्या संभव छै।

टोल सं दूर एकटा सोसाइटी में रहे बला मनुख कि अपन रूट क प्रति मोह क ऽ ओपेन फोरम में रखैत छैथ? ऐहन सवाल दिन-राति उछल कूद करैत रहैत अछि। एहन अवसर पर भगैत सुनैक मन करैत अछि, भगैत जकरा में रुट क ऽ गप्प होई छै। मूलगैन बीच भीड़ में ठार भऽ कऽ  उद्घघोष करैत छै कि एकटा गाम छै।

हम कथा क विस्तार करबाक मूड बनबै छी। एकटा गाम छै के आगू एकटा टोल छै, इ सोचबाक ख्याल करै छी। ठीक एहन समय पर विषयांतर होएबाक ख्याल सेहो आबि जाएत अछि। बाबूजी ठीके कहैत रहैत -" अहां क पैर स्थिर नै रहैत अछि। " तखैन हमरा अविनाश दास भैया  कऽ लिखल इ लाइन मन में बाजब शुरु भ जायत अछि-  "हिसाब-दौड़ी कहियो ने भेल, आंगुरक बीच मे भूर अछि, जे अरजल सभटा राइ-छित्ती भेल..।"

एकटा गाम छै क नाम सं नहर क ख्याल सेहो आबि रहल अछि। आब अहीं कहू, मन क ऽ कि बांधिक राखल जाए? कि एकरा व्याकरण सम्मत बनाएल जै? हमरा त व्याकरण सं ओहिना दूर रहै में निक लगैत अछि, तत्सम सं निक तद्भव लगैत अछि।


Sunday, September 18, 2011

अंचल क स्मृति

किछु दिन पूर्व अप्पन हिंदी ब्लॉग अनुभव पर अंचल क याद करैत गाम पर लिखनै रही। कैना पूर्णिया जिला क गाम सभ में गाछ-वृक्ष क पूजा होएत छै। संगे एकटा गाछ क याद करैत शब्द कतरन बनने रहों। हिंदी दैनिक जनसत्ता इ कतरन क अखबार में जग देलक। मन खुश भेल।

तेज और भागम भाग जिंदगी में हम सब गाम क स्मृति से सेहो विलुप्त करैत जा रहल छी। ऐना में अधिकांश समय अप्पने पर लाज सेहो लगैत अछि। यदि ककरो से कही कि गाम में बस चाहे छी, तो अवाक भ क मुंह देख लगैत अछि। ओकर जवाब होएत छै- देखियो..अखनै सठिया गेला ..। त ककरो टिप्पणी होएत छै- बाउ, भावुक नै बनू..इ खयाल क छोड़ि क घर परिवार में जुटि जाउ...। मुदा अप्पन मन में अखैन धरि गाम-अंचल स जुड़ल याद क सहारे लिखबाक इच्छा अछि..जकरा हम इरादा कहैत छिए।

इतिहासकार व समाजविज्ञानी सदन झा अप्पन एकटा लेख में 'अंचल क सांस्कृतिक स्मृति' शब्द क प्रयोग करैत छथिन, हमरा इहै शब्द स राग अछि। त कि यदि योजना बनाकs गाम दिश घुमल जाए त कि खराब। रोजी-रोटी क व्यवस्था ओतउ स करल जा सकैत अछि। मुदा योजना क साकार करबाक हिम्मत हेबाक चाहि और संगे अपना पर भरोसा सेहो। खैर, पढू, जनसत्ता के समांतर स्तंभ में छपल हमर इ कतरन, जै चित्र रुप में अछि। फोटो पर चटका लगाउ और पढू।

Friday, August 12, 2011

सिनेमा पर बवाल

प्रकाश झा सिनेमा तैयार करलैत 'आरक्षण', शुक्र क (12 अगस्त) उत्तर प्रदेश, पंजाब और आंध्र क छोड़ि क देश भर में इ रिलिज सेहो भेल मुदा एकरा ल क जै विवाद शुरु भेले हैं ओकरा सं केवल दुख भ रहल अछि। कि इ मुल्क में मनोरंजन पर सेहो सरकार क अधिकार भ गेल छै?

सब चैनल पर बहस क दौर चलि रहल छै। चैनल-पैनल बनि गैल अछि। आश्चर्य होएत अछि कि सिनेमा संग एहन व्यवहार किया करल जा रहल छै। यूपी में दू महिना लेल प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाएल गेल छै। एकटा अखबार में हेडिंग रहै कि 'यूपी में केवल माया को आरक्षण'। कि सचमुच सिनेमा क नेता सब अप्पन ढंग से बनेबाक प्रयास कर रहल छै? यदि सत्य छै त इ गलत भ रहल छै।

शब्द और शब्द सं जुड़ल काज में टांग घुसा क राजनीति क रंग और बदरंग करल जा रहल छै। हमरा त ताज्जुब भ रहल अछि कि यदि अहां क सिनेमा सं दिक्कत अछि त ओकर विपक्ष में अखबार वा पत्रिका में क्या नै लिखल जा रहल छै, सीधे सड़क पर मार-पीट लेल पार्टी झंडा संग लोग क्या उतर रहल छै।

सिनेमा रिलिज नै भेले और अहां बुझि गेलिए कि एकरा में सब चीज गलत छै। दुहाई महाराज..नेता संग हमहूं सब बौरा गेल छी। यूपी में प्रतिबंध क कारण इ सिनेमा हम नहीं देख सकब मुदा आशा अछि कि पाइरेटेड सीडी बाजार में जरुर आबि जैते। एकर मतलब भेल कि सरकार गैर कानूनी चीज क बढ़ाबा द रहल छै..। अहूं सब सोचू।

Wednesday, July 6, 2011

मन विचलित अछि

घर सं प्रेम नै छल,
लगाव त दूरक गप्प बाबू,
छोट छलहूं कि रहे बला स्कूल में भेज देल गेल,
किशोर भेलहूं त निक विचार और निक पोस्ट लेल दिल्ली भेज देल गेल,
नहीं पता कि घर वला क कसौटी पर उर्तीण भेलहूं कि नै,
मुदा आब घर सं राग जकां भ रहल अछि,
मां-बाबूजी क बढैत उमर पर सोचबाक कहियो याद नै रहल
लेकिन पिछुला किछ दिन सं पता नै किया घर ऐतै याद आबि रहल अछि,
कि एकर पाछू मोह छै या किछु और..
मन विचलित अछि,
घर क उ कोठली मन में एकटा स्कैच क रुप में आबि रहल अछि,
जकरां में छुट्टी में घर जैबा पर सुतिए छलहूं....
आजूक दिन मन विचलित अछि।

Monday, December 21, 2009

चांद क रोशनी देखबाक लेल, अहां कि करैत छी....

चांद क रोशनी देखबाक लेल, अहां कि करैत छी. चांद क दूधिया रोशनी लेल मन में उठैत अछि सवाल
ताहि कारण सं पूछे छी,
चांद क रोशनी देखबाक लेल, अहां कि करैत छी।

शहर क आपाधापी में सांझ क सांझ बुझे में दिक्कत होइत अछि
भेपर लाइट क चांद सं टकरैत देखे छिए त
गाम मन पड़ि जाएत अछि।

ओत सांझ क सांझ बुझैत छिए
तारा और चांद सं आसमान क रोशनी
बरामदा क आगू जखैन पड़ैत छै
मन तृपित भ जाएत अछि।

मुदा, आइ सांझ में तारा-चांद क रोशनी क बीच
इ भेपर लाइट हमरा तंग क रहल अछि।

ताहि कारण सं पूछे छि
चांद क रोशनी देखबाक लेल, अहां कि करैत छी.....।

Monday, August 17, 2009

मन क गप्प..मन में

कतेक रास बात मन में पड़ल रहि जाए छै,
हम अपने में फंसल रहि जाए छी.
और कतेक रास बात मन में पड़ल रहि जाए छै।

हम अपना सं निकलबाक लेल छटपटाइत रहैत छी
और हमर मन हमारा खेदाड़ेत रहेये..
कि आदमी अपन अंदर क आदमी क
बाहर नहीं निकालते..
कि हम सब बाहर दुनिया में अपना क उलझा क रखने रहबे..
हम कि करबे, कि अपन गप्प बाहर निकाल पाबि
कि, कतेक रास बात क कतेक रास लोग कहि सकी...