Wednesday, July 6, 2011

मन विचलित अछि

घर सं प्रेम नै छल,
लगाव त दूरक गप्प बाबू,
छोट छलहूं कि रहे बला स्कूल में भेज देल गेल,
किशोर भेलहूं त निक विचार और निक पोस्ट लेल दिल्ली भेज देल गेल,
नहीं पता कि घर वला क कसौटी पर उर्तीण भेलहूं कि नै,
मुदा आब घर सं राग जकां भ रहल अछि,
मां-बाबूजी क बढैत उमर पर सोचबाक कहियो याद नै रहल
लेकिन पिछुला किछ दिन सं पता नै किया घर ऐतै याद आबि रहल अछि,
कि एकर पाछू मोह छै या किछु और..
मन विचलित अछि,
घर क उ कोठली मन में एकटा स्कैच क रुप में आबि रहल अछि,
जकरां में छुट्टी में घर जैबा पर सुतिए छलहूं....
आजूक दिन मन विचलित अछि।