Thursday, February 12, 2009

इ दिल्ली छिए बाबू........

लगभग पांच बरख भ गेल दिल्ली में। पढ़े लेल एलों और दिल्ली में बेस जकां गेलों। कतेक बेर भेल जखेन लागल इ शहर मन में जगह ने बना रहेल अछि। लेकिन ओते बेर इहो सोचलों कि आय जे छी एकरा में इ शहर क सेहो योगदान छे।


घर से जखेन निकले छी मन में कतेक गप्प धमाल मचब लगेए, जेना जखैन आएल रहों पहिल बेर दिल्ली त केहेन रहों। हमरा जेना बदेल देलक इ दिल्ली। कॉलेज फेर नौकरी ॥। फेर एकटा प्रवासी मैथिल जकां सोचे लेल इ शहर कतेक बेर समय देलक।


कहियो इ शहर क उत्तर में रहलों त कहियो पश्चिम और आब दक्षिण में। भीड़ वाला इ शहर क भोर और सांझ क पढ़े क कोशिश में समय गुजरेत जा रहेल अछि और हम एकरा में बसेत जा रहल छी। रोड पर लाल बत्ती और हरियर बत्ती क चुपचाप कहियो ने देखेलिए, सत्य कहे छी भाय। मोन पारेत छी, जखेन नई दिल्ली स्टेशन पर उतरल रहों, कॉलेज में पहिल साल। सब किछु नब लगे रहे, भीड़ बला बस में बैठे काल जेना डर लगे रहे और आए सब किछ अपन लगेत अछि, केना कहिए कि इ शहर अजनबी छी हमरा लेल।


प्रवासी कहियो ने बुझलक इ दिल्ली हमरा और हम जेना एकरा अपन मुंहलगा यार बना लेलिए। दिल्ली विश्वविद्यालय क मुख्य द्वार पर ठार भ क कहियो ने लागल की हम अपन गाम में ने छी, ओहेना हंसेत, ठहाका लगबेत दोस्त, बस अंतर एतबे कि एतुका ड्रेस हमर गाम में लोग ने फेहरेत छै, बांकी त ने कोनो अंतर। साल दर साल एतो रमेत दोस्त क देखेत अनुभव करे छी कि अहिना त गाम में लोग सब अपन खेत में काज में डूबल रहेत छे।


शहर क आपाधापी में कतैक बेर मन उचेट सेहो गेल लेकिन ओतबे देर में मन शांत करबाक शक्ति सेहो शहर दिल्ली में छै।

मैथिली मे कोशिश क रहल छी ...कहब जरूर ,,,,