Saturday, October 25, 2008

कहबाक कला होइ छई- अविनाश

अविनाश कवि छैथ...इ कविता साहित्य अकादमी में मैथिली कार्यक्रम में सुनेने रहैथ।
आए अहुं सब पढ़ू, अविनाश त आब भोपाल में छैथ, बड़ मोन पड़ैत छैथ। चलू कविता क अंदर आउ ॥हमर संग॥


कहबाक कला होइ छई
हिसाब-दौड़ी कहियो ने भेल
आंगुरक बीच मे भूर अछि
जे अरजल सभटा राइ-छित्ती भेल
छिपली मे बांचल कनखूर अछि
हमर गाम मे छल एकटा
कहैत छल,
अरजबाक कला होइ छई
जेना बिदापति मंच सं कहय छथिन कमलाकांत
कहबाक कला होइ छई
कलाजीवी झाजी आ कलाजीवी कर्णजी!
कलाजीवी हुकुमदेव आ कलाजीवी फातमी!
बाढ़ि मे दहा गेलनि जिनकर गाम
सुन्न छैन्ह जिनकर
गुम्म छैन्ह मुह मे बकार
नचारी मे नहि ल' पओता
केओ उद्-घाटन बाती जरओता
केओ देता अध्यक्षीय
जाड़-बसात मे चमक चांदनी देखि
दुखित जन पीयर पुरान कागत पर लिखबे टा करत,
मुह के सी'बाक कला होइ छई
कतबो कहथु कमलाकांत
सुनबाक कला होइ छई
हल्ला-गुल्ला जुनि मचाउ बाउ
छी संस्कारी लोक
कहबाक कला होइ छई!